
हज़रत जाबिर इने अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक दफ़ा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हम से मुखातब हुए पस मैंने आपको फरमाते हुए सुना ऐ लोगो! जो हमारे अहले बैत से बुग्ज़ रखता है अल्लाह तआला उसे रोजे क्यामत यहूदियों के साथ जमा करेगा। तो मैंने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अगरचे वह नमाज़ रोज़ा का पाबन्द ही क्यों न हो और अपने आपको मुसलमान गुमान ही क्यों न करता हो तो आपने फरमाया हां अगरचे वह रोज़ा और नमाज़ का पाबन्द ही क्यों न हो। और खुद को मुसलमान तसव्वुर करता हो। ऐ लोगो! यह लबादा ओढ़ कर उसने अपने खून को मुबाह होने से बचाया और यह कि वह अपने हाथ से जिज़या दें दर आंहालेकि वह घटिया और कमीने हों। पस मेरी उम्मत मुझे मेरी मां के पेट में दिखाई गई पस मेरे पास से झुण्डों वाले गुज़रे तो मैंने हज़रत अली और शीआने अली के लिए मरिफरत तलब की। इस हदीस को इमाम तबरानी ने रिवायत किया है। (तबरानी स. 212)