इमाम अबी याला (वफात 307 हिजरी) ने अपनी मशहूर किताब मुस्नदे अबू याला में लिखा है कि-
“हजरत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि हम रसूलुल्लाह सल्ल० के साथ मदीने की गलियों में टहल रहे थे और आपने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था फिर अचानक हम सब एक बाग के पास पहुंचे तो मैंने कहा कि या रसूलुल्लाह.! ये कितना अच्छा बाग है। आप सल्ल० ने फरमाया कि आपके लिए जन्नत में इससे भी अच्छा बाग है। इसी तरह हम सात बागों से गुजरें और हर बार यही सवाल किया तो रसूलुल्लाह ने यही जवाब दिया कि आपके लिए जन्नत में इससे भी अच्छा बाग है। फिर रास्ते में मुहम्मद सल्ल० रोने लगें तो मैंने कहा कि या रसूलुल्लाह सल्ल० आप क्युं रो रहे हो.?? तो आप सल्ल० ने फरमाया कि “उस बुग्ज की वजह से रो रहा हूं जो लोगों के सीने में तेरे लिए है..जिसका इज़हार मेरे (विसाल के) बाद करेंगें। फिर मैंने अर्ज किया कि क्या मेरा दीन सलामत रहेगा.?? आपने कहा कि आपका दीन सलामत रहेगा।” मुस्नद अबी याला, जिल्द अव्वल, सफा नंबर 361 और 362, हदीस नंबर 561