
सब के सब मोहम्मद (स.अ.व.) कैसे?
हज़रत इमाम जाफर सादिक अ.स. से किसी ने सवाल किया..
या इमाम मैंने बहुत बार ये सुना है कि आप और आपके अजदाद सभी ये बात कहते हैं कि,
हमारा पहला भी “मोहम्मद”
हमारा वस्ती भी “मोहम्मद”
हमारा आख़री भी “मोहम्मद”
यहां तक कि आप भी फरमाते हैं कि हम सब के सब मोहम्मद है..
मौला ये बात क्योंकर मुमकिन हो सकती है?
जबकि आप की जद में किसी का नाम “अली” है, किसी का नाम “हसन”, किसी का नाम “हुसैन” है, किसी का नाम “मोहम्मद” है और ख़ुद आपका नाम भी सादिक है?
इमाम जाफर सादिक अ.स ने फरमाया जाओ कुरआन लेकर आओ..
वो शख्स कुरआन ले कर आ गया..
इमाम ने फरमाया : क़ुरआन को खोलो जहां से तुम्हारा जी चाहे,
उस शख्स ने कुरआन को खोला,
मौला ने फरमाया : बताओ ये कौन सा सुरह तुम्हारे सामने है?
उस शख्स ने जवाब दिया, मौला ये सुरह फातिहा है..
मौला ने फ़रमाया : अब फिर कुरआन बंद करो..
उस शख्स ने कुरआन बंद कर दिया.
मौला ने फरमाया फिर कुरआन को जहां से चाहो खोलो..
उस शख्स ने फिर कुरआन को खोला,
मौला ने फिर पूछा कि बताओ ये कौन सा सुरह तुम्हारे सामने है?
उस शख्स ने जवाब दिया, मौला ये सुरह इनाम है..
मौला जाफर सादिक अ.स ने फिर फरमाया : फिर कुरआन को बंद करो और फिर जहां से जी चाहे खोलो..
उस शख्स ने फिर कुरआन को बंद किया और फिर खोला,
मौला ने फिर वही सवाल किया, बताओ अब कौन सा सुरह तुम्हारे सामने खुला पड़ा है?
उसने जवाब दिया, मौला ये सुरह यूसुफ है.
इमाम जाफर सादिक ने फरमाया अब कुरआन को बंद कर दो..
उस शख्स ने कुरआन बंद कर दिया..
मौला ने फरमाया कि अब तुम्हारे सामने क्या है?
उस शख्स ने कहा मौला ये मुकम्मल कुरआन है..
मौला ने सवाल किया.. क्या ये सुरह फातिहा नहीं है? उसने कहा नहीं मौला ये कुल कुरआन है..
मौला ने फिर सवाल किया.. क्या ये सुरह इनाम नहीं है? उसने कहा नहीं मौला ये कुरआन है..
मौला ने फिर सवाल किया.. क्या ये सुरह यूसुफ नहीं है? उसने कहा नहीं मौला ये तो कुरआन है..
फिर मौला जाफर सादिक ने फरमाया..
सुनो, जिस तरह कुरआन को खोलने पर हर सूरत अलग अलग नज़र आती है और समेट दी जाए तो कुरआन कहलाता है.
उसी तरह हम सब मोहम्मद हैं जिन को अलग अलग देखा जाए तो कोई “अली” कोई “हसन” कोई “हुसैन” कोई “मोहम्मद” नज़र आता है, मगर सिमट जाएं तो सब मोहम्मद (स.अ.व.) हैं…