
इमाम जलालुद्दीन श्यूती रह० ने ‘तफसीरे दुर्रे मंसूर’ में सूरह नूर (सूरह नंबर 24) की आयत नंबर 36 की तफसीर में लिखा है कि हजरत मुहम्मद सल्ल० ने इस आयत की तिलावत की तो एक आदमी उठा और अर्ज किया कि या रसूलुल्लाह.! ये कौन से घर हैं.?
रसूलुल्लाह सल्ल० ने फरमाया कि अम्बिया के घर।
फिर हजरत अबू बक्र सिद्दीक उठे और हजरत अली व फातिमा जेहरा के घर की ओर इशारा करते हुए अर्ज किया कि या रसूलुल्लाह.! ये घर भी इनमें से है.??
फिर हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्ल० ने फ़रमाया कि ‘ये इनमें अफजल तरीन है’।
– दुर्रे मंसूर, जिल्द 5, सफा नंबर 143,
सूरह नूर की आयत नंबर 36
@ कुरान मजीद के इस आयत की तफसीर से यह साबित हुआ कि हजरत फातिमा जेहरा और हजरत मौला इमाम अली अलैहिस्सलाम का घर अम्बियाओं के घरों से भी अफजल है।
घरो की अफजलियत ईंट और पत्थरों से नहीं होता बल्कि उस घर में बसने और रहने वाले अफजल तरीन इंसानों से होता है।
जिस घर को मुहम्मद सल्ल० ने नबियों के घरों से भी अफजल कहा, उस घर में ग्यारह इमामों के बाप सय्यदुल औलिया हजरत मौला इमाम अली अलैहिस्सलाम, सय्यदुन-निशा हजरत फातिमा-तुज्जहरा, इमाम हसन अलैहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम रहते हैं…और इसी घर में वो चाचा रहते थे जो बाप बनकर रिसालत की उंगली पकड़कर जवान किया..
अफसोस है कि पूछने वाले ने बाद में खुद इसी घर की तौहीन की और अपने आखिरी लम्हात में अफसोस करते रहे कि काश मैंने ये ना किया होता भले वो हमसे जंग करते..