हिजरत का तीसरा साल part 3

अबू सुफयान का nara और उसका जवाब

अबू सफ़यान जंग के मैदान से वापस जाने लगा तो एक पहाड़ी पर चढ़ गया और जोर जोर से पुकारा कि क्या यहाँ मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) हैं? हुजूर ने फ़रमाया कि

तुम लोग उसका जवाब न दो। फिर उसने पुकारा कि क्या तुम मे अबू बकर हैं। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि कोई कुछ जवाब न दे। फिर उसने पुकारा कि क्या तुम में उमर हैं? जब इसका भी कोई जवाब नहीं मिला। तो अबू सुफयान घमन्ड से कहने लगा कि ये सब मारे गए। क्योंकि अगर जिन्दा होते तो ज़रूर मेरा जवाब देते। ये सुनकर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु से ज़ब्त न हो सका। और आपने चिल्लाकर कहा कि ऐ दुश्मने खुदा तू झूटा है। हम सब जिन्दा हैं। अबू सुफ़यान ने अपनी फ़तह के घमन्ड में ये न रा मारा कि

– “उअलु हुबल

उअलु हुबल” यानी ऐ हुबल! तू सर बुलन्द हो जा। ऐ हुबल! तू सर बुलन्द हो जा। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फ़रमाया कि तुम लोग भी उसके जवाब में न रा लगा। लोगों ने पूछा

कि हम क्या कहें? इर्शाद फ़रमाया कि तुम लोग ये ना मारो कि

“अल्लाहु अअला व अजल्ल* यानी अल्लाह सब से बुलन्द मरतबा और बड़ा है। अबू सुफ़यान ने कहा कि ‘
“अनल उज्जा वला उज्जा लकुम’ यानी हमारे लिए उज्जा (बुत) है और तुम्हारे लिए कोई “उज्जा नहीं है। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम लोग इसके जवाब में ये कहो कि अल्लाहु मौलाना वला मौला लकुम यानी अल्लाह हमारा मददगार है और तुम्हारा कोई मददगार नहीं।

अबू सुफयान ने ब आवाजे बुलन्द बड़े फख के साथ ये एअलान किया कि आजका दिन बदर के दिन का बदला और

जवाब है लडाई में कभी फतेह। कभी शिकस्त होती है। ऐ मुसलमानो! हमारी फौज ने तुम्हारे मकतूलों के कान, नाक काटकर उनकी सूरतें बिगाड़ दी हैं मगर मैंने न तो इसका हुक्म दिया था। न मुझे इस पर कोई रंज- अफ़सोस हुआ है। ये कहकर अबू सुफयाम मैदान से हट गया और चल दिया।

(जरकानी जि.2 स – बरवारी गतवए रट ति 2 . ५७९)

हुन्द जिगर ख्वार

कुफ्फारे कुरैश की औरतों ने जंगे बदर का बदला लेने के लिए जोश में शोहदाए किराम की लाशों पर जाकर उनके कान, नाक वगैरा को काटकर सूरतें बिगाड़ दी। और अबू सुफ़यान की बीवी हुन्द’ ने तो इस बेदर्दी का मुजाहरा किया कि उन अअज़ा का हार बनाकर अपने गले में डाला। “हुन्द’ हज़रते हम्जा रदियल्लाहु अन्हु की मुक़द्दस लाश को तलाश करती फिर रही थी क्योंकि हज़रते इम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने जंगे बदर के दिन हुन्द के बाप उतबा को कत्ल किया था। जब उस बेदर्द ने हज़रते हम्जा रदियललाहु अन्हु को पा लिया तो खन्जर से उनका पेटफाड़कर कलेजा निकाला। और उसको चबा गई। लेकिन हलक से.न उतर सका इस लिए उगल दिया। तारीखों में हुन्द का लकब “जिगर ख्वार है वो इसी वाकिआ के बिना पर है।

सद-बिनुर रबीअ की वसीय्यत

हजरते जैद बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि मैं हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हुक्म से हज़रते सअद-बिनुर रबीअ की लाश की तलाश में निकला। तो मैंने उनको सकरात के आलम में पाया। उन्होंने मुझसे कहा कि

तुम

सीरतुल मुस्तफा बलहि वसल्लम

सल्लल्लाहु तआला

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रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से मेरा सलाम अर्ज कर देना। और अपनी कौम से बादे सलाम मेरा ये पैगाम सुना देना कि जब तक तुम में से एक आदमी भी जिन्दा है अगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तक कुफ्फार पहुँच गए। तो खुदा के दरबार में तुम्हारा कोई उज़ भी काबिले कुबूल न होगा। ये कहा और उनकी रूह परवाज़ कर गई।

(जरकानी जि.२ स.४८)

ख्वातीने इस्लाम के कारनामे

जंगे उहुद में मर्दो की तरह औरतों ने भी बहुत ही मुजाहिदाना जज़्बात के साथ लड़ाई में हिस्सा लिया। हज़रते बीबी आइशा और हज़रते बीबी उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हुमा के बारे में हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है कि ये दोनों पाएँचे चढ़ाए हुए मशक में पानी भर भर कर लाती थीं। और मुजाहिदीन खुसूसन जख्मीयों को पानी पिलाती थीं। इसी तरह हज़रते अबू सईद खुदरी रदियल्लाहु की वालिदा हज़रते बीबी उम्मे सलीत भी बराबर पानी की मशक्क भरकर लाती थीं और मुजाहिदीन को पानी पिलाती

थीं।

हज़रते उम्मे उम्मारा की जाँ निसारी

हज़रते बीबी उम्मे उम्मारा जिनका नाम “नसीय्येब’ है। जंगे उहुद में अपने शौहर हज़रते जैद बिन आसिम और दो फ़रज़न्द हज़रते उम्मारा और हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हुम को साथ लेकर आई थीं। पहले तो मुजाहिदीन को पानी पिलाती रहीं। लेकिन जब हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर कुफ्फार की यलगार का होशरुबा मंजर देखा। तो मशक को फेंक दिया और एक खंजर लेकर कुफ्फार के मुकाबले में सीना सिपर होकर खड़ी हो गई। और कुफ्फार के तीर व तलवार के हर एक वार को

सलामत हैं तो बे-इख्तियार उसकी जबान से इस शेअर् का मज़मून निकल पड़ा कि

तसल्ली है पनाहे बे कसाँ ज़िन्दा सलामत है कोई परवाह नहीं सारा जहाँ जिन्दा सलामत है अल्लाहु अकबर! इस शेर दिल औरत के सब-ईसार का क्या कहना? शौहर, बाप, भाई, तीनों के कत्ल से दिल पर सदमात के तीन तीन पहाड गिर पडे हैं मगर फिर भी जबाने हाल से इस का यही नअरा है कि :

मैं भी और बाप भी, शौहर भी, बिरादर भी फिदा ऐ शहे दी! तेरे होते हुए क्या चीज़ हैं हम

(तबरी स.१४२५)

शोहदाए किराम

इस जंग में सत्तर सहाबए किराम ने जामे शहादत नोश फरमाया। जिनमें चार महाजिर और छियासठ अन्सार थे। तीस की तअदाद में कुफ्फार भी निहायत जिल्लत के साथ कत्ल हुए।

(मदारिजुन्नुबूव्वत जि.२ स.१३३) मगर मुसलमानों की मुफ्लिसी का ये आलम था कि उन शोहदाए किराम के कफन के लिए कपड़ा भी नहीं था। हज़रते मुसअब बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु का ये हाल था कि बवक्ते शहादत उनके बदन पर सिर्फ एक इतनी बड़ी कमली थी कि उनकी लाश को कब्र में लिटाने के बाद अगर उनका सर ढाँपा जाता था तो पावँ खुल जाता था, और अगर पार्वं छुपाया जाता था तो सर खुल जाता था बिल आख़िर सर छुपा दिया गया और पाव पर इजखर घास डाल दी गई। शोहदाए किराम खून में लुथड़े हुए दो दो शहीद एक एक कब्र में दफ्न किए गए। जिसको कुरआन ज्यादा याद होता उसको आगे रखते । (बुखारी बाबुल इजालम यूजुदल असूब वाहिद जि.१ स.१७० व बुख़ारी जि.२ स.५८४ बाबुज जैन इस्तिजाबवा)

कुबूरे शोहदा की जियारत

हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम शोहदाए उहुद की कब्रों की जियारत के लिए तशरीफ ले जाते थे। और आपके बाद हज़रते अबू बकर सिद्दीक व हज़रते उमर फारूक रदियल्लाहु अन्हुमा का भी यही अमल रहा। एक मर्तबा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम शोहदाए उहुद की कब्रों पर तशरीफ ले गए तो इर्शाद फरमाया कि या अल्लाह! तेरा रसूल गवाह है कि इस जमाअत ने तेरी रिज़ा की तलब में जान दी है। फिर ये भी इर्शाद फरमाया कि कियामत तक जो मुसलमान इन शहीदों की कब्रों पर जियारत के लिए आएगा और उनको सलाम करेगा तो ये शोहदा उसके सलाम का जवाब देंगे।

चुनान्चे हज़रते फ़ातिमा खुज़ाइया रदियल्लाहु अन्हा का बयान है कि मैं एक दिन नउहुद के मैदान से गुजर रही थी। हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अनहु की कब्र के पास पहुँचकर मैं ने अर्ज कि.’अस्सलामु अलैका या अम्मा रसुलिल्लाहि (ऐ रसूलुल्लाह के चचा आप पर सलाम हो) तो मेरे कान में ये आवाज़ आई कि “वअलैकिस्सलामु व-रहमतुल्लाहि व ब-र-कातुहू

(मदारिजुन्नुबूब्बत जि.२ स १३५)

हयाते शोहदा

छियालीस बरस के बाद शोहदाए उहुद की बअज़ कब्र खुल गई। तो उनके कफन सलामत और बदन तरो-ताजा थे, और तमाम अहले मदीना और दूसरे लोगों ने देखा कि शोहदाए किराम अपने ज़ख्मों पर हाथ रखे हुए हैं। और जब ज़ख़्म से हाथ हटाया गया तो ताज़ा खून निकलकर बहने लगा।

(मदारिजुन्नुबूब्बत जि.२ स.१३५)

कअब बिन अशरफ का कत्ल

यहूदियों में कअब बिन अशरफ बहुत ही दौलतमंद था। यहूदी ओलमा और यहूद के मज़हबी पेशवाओं को अपने खजाने से तनख्वाह देता था। दौलत के साथ शाएरी में भी बहुत बा कमाल था। जिसकी वजह से न सिर्फ यहूदियों, बल्कि तमाम कबाएले अरब पर उसका एक खास असर था। उसको हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सख्त अदावत थी। जंगे बदर में मुसलमानों की फतह और सरदाराने कुरैश के कत्ल हो जाने से उसको इन्तिाहई रंज व सदमा हुआ। चुनान्चे ये कुरैश की तअजीयत के लिए मक्का गया। और कुफ्फारे कुरैश का जो बदर में मकतूल हुए थे। ऐसा पुर दर्द मरसिया लिखा कि जिसको सुनकर सामईन के मजमअ में मातम बरपा हो जाता था। इस मरसिये को ये शख्स कुरैश को सुना सुनाकर खुद भी जार ज़ार रोता था। और सामईन को भी रुलाता था। मक्का में अबू सुफ़यान से मिला । और उसको मुसलमानों से जंगे बदर का बदला लेने पर उभारा । बल्कि अबू सुफयान को लेकर हरम में आया और कुफ्फ़ारे मक्का के साथ खुद भी कबा का गिलाफ़ पकड़कर अहद किया कि मुसलमानों से बदर का ज़रूर इन्तिकाम लेंगे। फिर मक्का से मदीना लौटकर आया। तो हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हिजू लिखकर शाने अकदस में तरह तरह की गुस्ताखियाँ और बे अदबियाँ करने लगा। इसी पर बस नहीं किया बल्कि आपको चुपके से कत्ल करा देने का कस्द किया।

कअब बिन अशरफ यहूदी की ये हरकतें सरासर उस मुंआहदे की ख़िलाफ़ वरज़ी थीं जो यहूद और अन्सार के दर्मियान हो चुका था कि मुसलमानों और और कुफ्फारे कुरैश की लड़ाई में यहूदी गैर जानिबदार रहेंगे। बहुत दिनों तक मुसलमान बर्दाश्त करते रहे। मगर जब बानीए इस्लाम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मुकद्दस जान को ख़तरा लाहिक हो गया। तो हज़रते

मुहम्मद बिन मुस्लिमा ने हज़रते अबू नाएला व हजरते अब्बाद बिन बिश्र व हजरते हारिस बिन अवस व हजरते अबू अबस रदियल्लाहु हन्हुम को साथ लिया। और रात में कब बिन अशरफ के मकान पर गए और रबीउल अव्वल सन्न ३ हिजरी को उसके किलओ के फाटक पर उसको कत्ल कर दिया और सुबह को बारगाहे रिसालत सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में हाज़िर होकर उसका सर ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के कदमों में डाल दिया। इस कत्ल के सिलसिले में हज़रते हारिस बिन अवस रदियल्लाहु अन्हु की तलवार की नोक से जख्मी हो गए थे। मुहम्मद बिन मुस्लिमा वगैरा रदियल्लाहु अनहुम उनको कन्धों पर उठाकर बारगाहे रिसालत में लाए। और आपने अपना लुआबे दहन उनके ज़ख्म पर लगा दिया तो उसी वक्त शिफाए कामिल हासिल होगई। (ज़रकानी जि.२ स.१० व बुख़ारी जि.२ स. ५७६ व मुस्लिम जि. स. ११०)

ग़ज़वए गतफ़ान

रबीउल अव्वल सन्न ३ हिजरी में हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को इत्तिलाअ मिली कि नज्द के एक मशहूर बहादुर “दुअसूर बिनुल हारिस मुहारबी ने एक लश्कर तय्यार कर लिया है ताकि मदीना पर हमला करे। इस ख़बर के बाद आप चार सौ सहाबाए किराम की फ़ौज लेकर मुकाबले के लिए रवाना हो गए। जब दुअसूर को ख़बर मिली कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हमारे दयार में आ गए। तो वो भाग निकला और अपने लश्कर को लेकर पहाड़ों पर चढ़ गया। मगर उसकी फौज का एक आदमी जिसका नाम “हिब्बान” था। गिरफ्तार होगया। और फौरन ही कलिमा पढकर उसने इस्लाम कुबूल कर

लिया।

इत्तिफाक से उस रोज़ ज़ोरदार बारिश हो गई। हुजूर

सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक दरख्त के नीचे लेटकर अपने कपड़े सुखाने लगे। पहाड़ की बुलन्दी से काफिरों ने देख लिया कि आप बिल्कुल अकेले और अपने असहाब से दूर भी हैं। एक दम दुअसूर बिजली की तरह पहाड़ से उतरकर नंगी शमशीर हाथ में लिए हुए आया। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सरे मुबारक पर तलवार बुलन्द करके बोला। “बताईए कि अब कौन है जो आपको मुझ से बचाले?” आपने जवाब दिया कि मेरा अल्लाह मुझको बचाएगा। चुनान्चे हजरते जिबरईल अलैहिस्सलाम दम ज़दन (पलक झपकने) में ज़मीन पर उतर पड़े और

दुअसूर के सीने मे एक घुसा मारा कि तलवार उसके हाथ से गिर पड़ी और दुअसूर जैन गैन होकर रह गया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फौरन तलवार उठा ली। और फ़रमाया कि बोल अब तुझ को मेरी तलवार से कौन बचाएगा? दुसूर ने काँपते हुए भर्राई हुई आवाज़ में कहा कि “कोई नहीं रहमतुल लिल आलमीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को उसकी बेकसी पर रहम आ गया और आपने उसका कुसूर माफ़ फ़रमा दिया। दुअसूर इस अख्लाके नुबूब्बत से बेहद मुतास्सिर हुआ और कलिमा पढ़कर मुसलमान होगया। और अपनी कौम में आकर इस्लाम की तब्लीग करने लगा।

इस गज़वे में कोई लड़ाई नहीं हुई। और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ग्यारह या पन्द्रह दिन मदीना से बाहर रहकर फिर मदीना आ गए।

(जरकानी जि.२ स. १५ व बुखारी जि.२ स.५९३) बअज़ मुअरिंखीन ने इस तलवार खींचने वाले वाकिले को “गजवाते ज़ातुर रिका के मौका पर बताया है। मगर हक ये है कि तारीखे नबवी में इस किस्म के दो वाकिआत हुए हैं। “गजवए गतफाँ’ के मौका पर सरे अनवर के ऊपर तलवार उठाने वाला ‘दुसूर बिन हारिस मुहारबी’ था जो मुसलमान होकर अपनी कौम के इस्लाम का बाइस बना। और गज़वाते जातुर रिकाअ में

जिस शख्स ने सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर तलवार उठाई थी उस का नाम “गौरस था। उसने इस्लाम कुबूल नहीं किया। बल्कि मरते वक्त तक अपने कुफ पर अडा रहा। हाँ अलबत्ता उसने ये मुआहदा कर लिया था कि वो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से कभी जंग नहीं करेगा।

(जरकानी जि.२ स १६)

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