शैख़ुल इस्लाम इस फ़ित्ने
(ज़िक्रे अहलेबैत के दौरान औरों के फ़ज़ाइल मनाक़िब बयान करना) के मुताल्लिक़ बयान फ़रमाते है :

” याद रखो ये एक ऐसा फ़ित्ना है कि इस के ज़रिये अहलेसुन्नत में ख़ारजियत दाख़िल हो रही है और मैं आज आपको बता रहा हूँ अगर ये फ़ित्ना जारी रहा तो सदियों के बाद आप देखेंगे ये फ़ित्नाबाज़ लोग अहलेसुन्नत के अक़ीदे से मोहब्बते अहलेबैत को मुकम्मल निकाल देंगे ये ख़ारजी बन जायेंगे…..ये क़ौम को ख़ारजियत की तरफ़ ले जा रहे हैं….
ऐसे मोलवियों से परहेज़ करें…ये हुज़ूर के अहलेबैत ए अतहार से दुश्मनी रखने वाले लोग हैं ये हर्गिज़ सुन्नी नही हैं ये दुश्मने अहलेबैत हैं…..शहादत इमामे हुसैन की हो और मनाक़िब किसी और के बयान किए जाएं ये तुम्हारे अंदर छुपा हुआ बुग्ज़ (दुश्मनी) बोल रहा है……. अहलेबैत की दुश्मनी बोल रही है…..ये भेड़िये अहलेसुन्नत में घुस गए हैं और दनदनाते फिर रहे हैं ये अक़ीदे को बर्बाद करे देंगे
मैं मुतानाब्बे करता हूँ….ये जो हमारे उल्मा चुप बैठे हैं किस लिए चुप बैठे हैं ऐसे लोगों के गिरेबान पकड़े और जूते मार के उनको मस्जिदों से बाहर निकाल दें..……ये ख़ारजी घुस आए हैं बे-ईमान “
इतना कुछ होने के बाद भी हम ख़ामोश रहते हैं तो वाक़ई में हमारी ख़ामोशी जुर्म होगी……हमे चाहिए की ख़ामोश रहने के बजाए ऐसे यज़ीदी ख़ारजी मोलवियों को अहलेसुन्नत की सफ़ों से जुते मार कर बाहर निकाल दें
” ज़िक्रे इमामे हुसैन सिर्फ़ शरीफ़ माओं की औलाद करती है……बे-ग़ैरत का क्या ताल्लुक़ इमामे हुसैन से