ग़ार ए सौर का वो साँप

ग़ारसौरकावो_साँप जिसने हिजरत के मौक़े पर हज़रते अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहो अन्हु को डसा था….

वो साँप आक़ा ए करीम ﷺ की ज़ियारत के लिए हज़ारों साल से मुन्तज़िर था ।
हज़रत ईसा रूहुल्लाह अलैहिस्सलाम एक मर्तबा कहीं तशरीफ ले जा रहे थे ।
साँप को पता चला कि इस रास्ते से हज़रत ईसा गुज़रेंगे..जब आप का गुज़र हुआ तो साँप आप की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज किया – या रूहुल्लाह…!! राहे मक्का किधर है..?? आप ने पूछा – तुझे राहे मक्का से क्या मतलब..? साँप ने कहा – या नबी उल्लाह… 600 साल हो गये ।
मेरा दिल इश्क ए मुहम्मदी में तड़प रहा है और फिराक़े मोहम्मद ﷺमें मेरा जिस्म सूख कर लगर हो गया है ।
हज़रत ईसा ने फरमाया – अभी अपने दिल को ठन्डा रख मेरे और उनकी तशरीफ़ आवरी में 600 साल दर पेश हैं ।
साँप ने अर्ज किया – मेरी तो रग-रग में इश्के मोहम्मदी बस चुका है ।
या नबी करम फरमायें और बराये मेहरबानी मक्का का रास्ता बतायें ।
मेरे लिए यही बेहतर है कि मैं अपने महबूब की याद में जान दे दूँ ।
चुनाँचे हज़रत ईसा अलैहीस्सलाम ने उस साँप को मक्के का रास्ता दिखाया ।
साँप चल पड़ा रास्ते में कई दुशवारियाँ पेश आयीँ कई जगह पर ख़तरनाक साँपों से मुक़ाबला हुआ कई कई दिन तक ख़ुराक़ नसीब नहीं हुई ।
आख़िर बहुत मेहनत और मशक़्कत के बाद वो साँप अपनी मन्ज़िल मक्का शरीफ पहुँच गया और ग़ार ए सौर में में आकर आक़ा ए करीम ﷺ का मुन्तज़िर रहा ।
और ये भी मन्क़ूल है कि वो साँप रोज़ाना शौक़ ए दीदार में 70 बार अपने बिल से बाहर निकलता था ।
सुब्हानल्लाह
ये है साँप का इश्क़ और जिस मक़ड़ी ने हिजरत के मौक़े पर गार ए सौर के चारों तरफ जाला ताना था उसके मुताल्लिक़ भी ये क़ौल मिलता है कि वो मकड़ी 700 साल से उस ग़ार में मुन्तज़िर बैठी थी ।
( मदारीजुन्नुबूब रूक़्न चहारम )
(ताजुल क़सस -145/46)
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