
एक वली और मोहद्दिस
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〽️एक वली एक मोहद्दिस के दर्से हदीस में हाज़िर हुए तो एक मोहद्दिस ने एक हदीस पढ़ी और कहा क़ल रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम यानी रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने यूं फ़रमाया तो वो वली बोले, ये हदीस बातिल है रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने हरगिज़ यूं नहीं फ़रमाया।
वो मोहद्दिस बोले के तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? और तुम्हें कैसे पता चला के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने ऐसा नहीं फ़रमाया?
तो वली ने जवाब दियाः- हाज़ा अन्नबिय्यू सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम वक़ीफू अला रासिका यकूलू इन्नी लम अकुल हाज़ल हदीस
“ये देखो नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम तुम्हारे सर पर खड़े हैं और फ़रमा रहे हैं मैंने हरगिज़ ये हदीस नहीं कही।”
वो मोहद्दिस हैरान रह गए और वली बोले, क्या तुम हुज़ूरे अकरमﷺ को देखना चाहते हो तो देख लो।
चुनाँचे जब उन मोहद्दिस ने ऊपर देखा तो हुज़ूरﷺ को तशरीफ़ फ़रमा देख लिया।
(फ़तावा हदीस, सफ़ा-212)
🌹सबक़ ~
हमारे हुज़ूरﷺ हाज़िर व नाज़िर हैं मगर देखने के लिए किसी वली क़ी नज़र दरकार है और किसी कामिल वली
की नज़रे करम हो जाए तो आज भी सरकारे अबद क़रार के दीदार पुर अनवार का शरफ़ हासिल हो सकता है।
एक मुशायरा
एक मजलिस मुशायरे में एक इसाई शायर ने हस्बे ज़ेल शैर कहे :-
मोहम्मदﷺ तो ज़मीं में बेगुमाँ है!
फ़लक पर इब्ने मरयम का मकाँ है
जो ऊँचा है वही अफ्ज़ल रहेगा
जो नीचे है भला अफ़्ज़ल कहाँ है?
एक मुसलमान शायर ने उसके जवाब में ये शैर कहा :-
तराज़ू को उठा कर देख नादाँ!
वहीं झुकता है जो पल्ला गिराँ है।
📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 68-69, हिकायत नंबर- 54