ज़ियारते क़ब्र और उस से फ़ायदा हासिल करना कैसा
हदीस शरीफ
हज़रते बुरीदा रज़ीअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मैं ने तुम लोगों को क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था। अब मैं तुम्हें इजाज़त देता हूं कि उन की ज़ियारत करो।
(मुस्लिम शरीफ, मिशकात सफहा :154)
हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहादिस देहलवी रहमतऊल्लाही तआला अलै इस हदीस शरीफ की शरह में फरमाते है कि ज़मान-ए-जाहिलियत से क़रीब होने के सबब इस अंदेशे से, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले क़ब्रों की ज़ियारत से मना कर दिया था कि लोग उनके साथ फिर कहीं जाहिलियत वाला रवैया ना इख्तियार कर लें। फिर जब इस्लाम के कानून से लोग ख़ुब अगाह हो गए तो आपने क़ब्रों की ज़ियारत के लिए इजाज़त दे दी।
( अशअतुल्लमआत जिल्द :01,सफहा :717)
हज़रते आयशा सिददीक़ा रज़ीअल्लाहु तआला अन्हा से रिवायत है उन्होंने ने फरमाया कि जिस रात हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन के यहां कियाम (आराम) फरमाते तो आखिर रात में उठ कर मदीने के कब्रिस्तान में तशरीफ ले जाते।
( मुस्लिम शरीफ, मिशकात सफहा :154)
हज़रते मुहम्मद बीन नोमान रज़ीअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसुलुल्लाह सल्लललाहो अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो अपने माँ-बाप की क़ब्रों की ज़ियारत करे या उन में से किसी एक की क़ब्र की हर जुमे के दिन तो उसे बख़श दिया जाएगा और उसे नेकी करने वाला लिखा जाएगा।
(मिशकात शरीफ सफहा :154)
“”इन अहादीसे करीमा से मालूम हुआ कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नज़दीक क़ब्रों की ज़ियारत जाइज़ हैं बल्कि जो शख्स हर जुमुआ़ को अपने माँ-बाप की क़ब्रों की ज़ियारत करे वह बख़श दिया जाएगा।