*#एक_अज़ान_22_शहीद*
13 जुलाई 1931 को बहुत बड़ी तादाद में कश्मीरी मुसलमान श्रीनगर सेन्ट्रल जेल के सामने जमा हुए… वो नोजवान अब्दुल क़दीर के साथ यार-ए-यक़जहती के लिये जमा हुवे थे, जिनपर डोंगरा राज ने बग़ावत का इल्ज़ाम लगाया था…। इस दौरान नमाज़ का वक़्त हुआ, इस्तमा में से एक मुसलमान उठा और अज़ान देने लगा…। डोंगरा सिपाहियों ने फायर दाग दिया… कश्मीरी मुसलमान की अज़ान अधूरी रही…।
एक और मुसलमान उठा और जहाँ से पहले मुसलमान ने शहादत की वजह से सिलसिला तोड़ा था उसने वहीं से जोड़ा… फिर फायर दागा गाया और उसे भी शहीद कर दिया गया…। अज़ान को मुकम्मल करने के लिये एक और मुसलमान उठा यहाँ तक कि एक के बाद एक 22 मुसलमानों ने अज़ान मुकम्मल की, और शहादत का रुतबा पाया…।
दुनिया इस्लाम की तारीख़ की ये वो वाहिद अज़ान है जिसको 22 शहादतों का फ़क़्र नसीब हुआ…। 22 शहीदों का खून बहा और अज़ान मुकम्मल हुई…।
तसव्वुर कीजिये कि अज़ान जारी है और 22 जाने बारी बारी शहादत हासिल कर रहीं हैं… अज़ान की ख़ातिर… हक़ की ख़ातिर… हक़ के ख़ुद इरादियत की ख़ातिर…।
ये वाकिआ अगर यूरोप या अमेरिका में आया होता तो इस पर अब तक सैकड़ों किताबें और कम से कम बीस फिल्में ज़रूर बन गईं होतीं…।
दुनिया में जबर और मज़ाहिमत के खूँ रेज़ वाकिआत में ये 22 शहीद और एक अज़ान सरे फहरिस्त रहेंगें…।
आजकल मसला यह है कि लोगों के अंदर दुनिया की मोहब्बत गालीब हो गयी वो जानते ही नहीं शहादत का लुत्फ क्या होता है पहले के लोग सुबह कि नमाज के बाद पहली दुआ ही शहादत की मांगते थे याद रखें जिस दिन हमने अपने अंदर से ये निकाल लिया कि हमारे जाने के घरवालों को क्या होगा उस दिन हम गाज़ी बन ग ए