हजरत ईमाम हसन बिन अली (अ.स.) बयान करते हैं कि हुजूर सल्लाहो अलैहे वाआलिही-वसल्लम ने फरमाया”हम एहलेबैत की मुहब्बत को लाज़िम पकड़ो, बस बेशक वह शख्स
जो इस हाल में अल्लाह से मिला कि वह हमें मुहब्बत करता था.
तो वह हमारी शफाअत के सदके में जन्नत में दाखिल होगा
और उस ज़ात की कसम जिसके कब्जा-ए-कुदरत में मेरी
जान है किसी शख्स को उसका अमल फाएदा नहीं देगा
मगर हमारे हक की मारेफत के सबब
(तबरानी-फी-मजनउ-ल-औसत. 02/380, रकम-2230)
नोट- इस हदीस-ए-पाक में एहलेबैत से मुहब्बत करने की हिदायत दी जा रही है, और
इससे यह भी पता चलता है कि आमाल किसी के भी हो उसको काम न आएँगे
(मसालन – नमाज़, रोज़ा, हज, जकात, सदाकात) बगैर मुहब्बते रसूल-ओ-आले
रसूल सल्लाहो अलैहे-वा-आलिही-वसल्लम के।