“उम्मुल मोमिनीन (उम्मत की माँ) हज़रत अम्मा आईशा सिद्दीक़ा (स.अ.) बयान
करती हैं, जब हज़रत मौला अली (र.ज.) हमारे घर आते तो मेरे बाबा जान ख़लीफा-ए-बरहक, अमीर-उल-मोमिनीन हज़रत अबु-बकर सिद्दीक (र.ज.) सारे काम छोड़ के
हज़रत मौला अली (क.व.क.) का चेहरा देखते तो मैं कहती थी, ‘बाबा जान आप मेरे घर
आते हो और चेहरा हज़रत मौला अली (अलेहिसलाम.) का देखते रहते हैं, इसकी क्या वजह है ?
तो हज़रत अबु-बकर सिद्दीक़ (र.ज.) ने फरमाया – ‘बेटी, गलती न कर मैंने
अपने कानों से नबी-ए-करीम ‘सल्लाहो अलैहे-वा-आलिही-वसल्लम’ से सुना है –
“अली का चेहरा देखना इबादत है”
(किताब रियाजुनन ज़रह-फी-अश्शरह-मुबश्शरह, जिल्द-2, सफा-445)