*जुमआ का बयान और ख़ुत्बा सुनने के एहकाम*
بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ
اَلصَّــلٰـوةُ وَالسَّــلَامُ عَــلَـيْـكَ يَا رَسُــوْلَ اللّٰه ﷺ
जुमा फर्ज है और उसका फर्ज़ होना जुहर से ज्यादा मुअक्कद है। इसका मुन्किर काफ़िर है।
*📓दुर्रे मुख़्तार जिल्द 1 सफः 535*
हदीस शरीफ में है कि जिसने तीन जुमे बराबर छोड़ दिये उसने इस्लाम को पीठ के पीछे फेंक दिया। वह मुनाफिक है और अल्लाह से बे-तअल्लुक है।
*📓इब्ने खुज़ैमा*
*मसला:- जुमा फर्ज़ होने के लिए मुन्दर्जा ज़ैल ग्यारह शर्ते हैं-*
*(1)* शहर में मुकीम होना- लिहाजा मुसाफिर पर जुमा फर्ज नही।
*(2)* आजादा होना – लिहाजा गुलाम पर जुमा फर्ज़ नहीं।
*(3)* तन्दुरूस्ती यानी एेसे मरीज पर जुमा फर्ज़ नहीं जो जामा मस्जिद तक नहीं जा सकता। (जामा मस्जिद से मूराद अपने मुहल्ले की मस्जिद है)
*(4)* मर्द होना यानी औरत पर जुमा फर्ज़ नही ।
*(5)* आकिल होना यानी पागल पर जुमा फर्ज़ नही।
*(6)* बालिग़ होना यानी बच्चो पर जुमा फर्ज़ नही।
*(7)* अंखियार होना यानी अन्धे पर जुमा फर्ज़ नही ।
*(8)* चलने की कुदरत रखने वाला यानी अपाहिज और लुन्जे पर जुमा फर्ज़ नही ।
*(9)* कैद मे न होना- लिहाजा जेल खाना के कैदयों पर जुमा फर्ज़ नही।
*(10)* हाकिम या जा़लिम वगैरह का खौ़फ़ न होना।
*(11)* बारिश या आंधी का इस कदर ज़्यादा न होना ज़िस से नुकसान का कवी अन्देशा हो।
*📓दुर्रे मुख़्तार व रद्दुल मुहतार जिल्द 1 सफ: 546*
हज़रते सलमान रजियल्लाहु तआ़ला अन्हु ने कहा कि हज़रते सरकारे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख्स जुम्आ के दिन नहाऐ जिस कदर हो सके पाकी व सफाई करे और तैल लगायें खुशबू मले जो घर मे मयस्सर आये -फिर घर से नमाज के लिए निकले और दो आदमियों के दरमियान *(अपने बैठने या आगे गुजरने के लिए)* जगह न बनाएं फिर नमाज़ पढ़े जो मुकर॓र कर दी गई है फिर जब इमाम खुतबा पढ़े तो चुपचाप बैठा रहै तो उस के वह सब ग़ुनाह जो एक जुमआ से दूसरे जुमआ तक उस ने किए हैं मुआफ कर दिए जायेंगे।
*_📓इब्ने माज़ा,अनवारुल हदीस पेज न.106_*
हज़रते समुरा जुनदब रजियल्लाहु तआ़ला अन्हु ने कहा कि हज़रते रसूल ए करीम अलैहिस्सलातो वस्ससलाम ने फरमाया कि जिस शख्स ने बगैर किसी सबब के जुमआ की नमाज छोड़ दी तो उसे चाहिए कि तो एक दीनार (अशरफी) खैरात करे इतना ना हो सके तो आधा दीनार
*_📓अहमद-अबू दाऊद,अनवारुल हदीस 107_*
हज़रते समुरा जुनदब रजियल्लाहु तआ़ला अन्हु ने कहा कि हज़रते रसूल ए करीम अलैहिस्सलातो वस्ससलाम ने फरमाया कि हाजिर रहो खुतबा के वक्त और इमाम से करीब रहो इसलिए कि आदमी जिस कदर दूर रहेगा उसी कदर जन्नत में पीछे रहेगा, अगरचे वह जन्नत मे दाखिल जुरूर होगा।
*_📓अबू दाऊद,इब्ने माज़ा,अनवारुल हदीस पेज न.107_*
*👉🏻ख़ुत्बा सुनने व बैठने के एहकाम👇🏻*
जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, ख़ुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है।
ख़ुत्बा सुनना फ़र्ज़ है और ख़ुत्बा इस तरह सुनना फ़र्ज़ है कि हमा-तन (समग्र एकाग्रता) उसी तरफ तवज्जोह दे और किसी काम में मश्गुल न हैं.
ख़ुत्बा के वक़्त ख़ुत्बा सुननेवाला “दो जानू” यानी नमाज़ के क़ायदे में जिस तरह बैठते है उस तरह बैठे
ख़ुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है।
जुमुआ के दिन ख़ुत्बा के वक़्त खतीब के सामने जो अज़ान होती है, उस अज़ान का जवाब या दुआ सिर्फ दिल में करें। ज़बान से अस्लन तलफ़्फ़ुज़ (उच्चार) न हो।
जुमुआ की अज़ाने सानी (ख़ुत्बे से पहले की अज़ान) में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुनकर अंगूठा न चूमें और सिर्फ दिल में दुरुद शरीफ पढ़े।
ख़ुत्बा में हुज़ूर صلى الله عليه وسلم का नाम सुन कर दिल में दुरुद शरीफ पढ़े, ज़बान से खामोश रहना फ़र्ज़ है।
जब इमाम ख़ुत्बा पढ़ रहा हो, उस वक़्त वज़ीफ़ा पढ़ना मुतलक़न ना जाइज़ है और नफ्ल नमाज़ पढ़ना भी गुनाह है।
ख़ुत्बा के वक़्त भलाई का हुक्म करना भी हराम है, बल्कि ख़ुत्बा हो रहा हो तब दो हर्फ़ बोलना भी मना है। किसी को सिर्फ “चुप” कहना तक मना और लग्व (व्यर्थ) है
ख़ुत्बा सुनने की हालत में हरकत (हिलना-डुलना) मना है। और बिला ज़रूरत खड़े हो कर ख़ुत्बा सुनना खिलाफे सुन्नत है। अवाम में ये मामूल है कि जब खतीब ख़ुत्बा के आखिर में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है “व-ल-ज़ीक़रुल्लाहे तआला आला” तो उसको सुनते ही लोग नमाज़ के लिये खड़े हो जाते है। ये हराम है, कि अभी ख़ुत्बा नही हुआ, चंद अलफ़ाज़ बाक़ी है और ख़ुत्बा की हालत में कोई भी अमल करना हराम