10 जनवरी, 1919 को मदीना शरीफ़ में उस्मानिया सल्तनत खातमा हो गया था –
उस वक़्त वहा के गवर्नर फखरी पाशा थे
जो न चाह्ते हुये भी हथियार डाल के लिये मज़बूर थे!
10 जनवरी 1919 को ही उस्मानिया परचम मदीना मुनव्वरा से हटाया गया था!
पहली आलमी जन्ग के दौरान अन्ग्रेजी कुव्वतो ने बड़े ही शातिराना तरीके से रियासत ए उस्मानिया में बगावत पैदा की
और
हिज़ाज़ ए मुकद्दस को लेकर एक बहुत बड़ी घेराबन्दी की,
तब ये इलाका सल्तनत ए उस्मानिया का हिस्सा था।
अंग्रेजो के लिये मोहरा बने मक्का के शरीफ (हुसैन बिन अली) ने सल्तनत को धोखा दिया और रियासत के खिलाफ़ बगावत की!
तुर्की सल्तनत के खिलाफ बगावत करने के लिये शरीफ़ हुसैन को ब्रिटिश गवर्नर थॉमस एडवर्ड लारेंस (लॉरेंस ऑफ़ अरबिया) का साथ मिला
और
मक्का मे बगावत कर के उस्मानीया हुकूमत को कमजोर किया
उसके बाद इन्होनें मदीना शहर की घेराबन्दी की!
ये घेराबन्दी तारीख की लंबी घेराबंदी मे से एक थी –
जो जंग के बाद भी जारी रही तक़रीबन दो साल सात महीने तक चली,
इस घेराबंदी के दौरान फखरी पाशा ने मदीना का बचाव किया।
लेकिन बेगुनाहो के कत्लेआम और मुकद्दस जगह को खूँरेजी से बचाने के लिये
10 जनवरी, 1919 को, शेर ए सहरा फखरी पाशा अपने 456 अफसरान और
9,364 सिपाहियो के साथ #_रौज़ा_ए_रसूल_ﷺ मे आखिरी हाज़िरी को पहुचे!
और इन अल्फाज़ो के साथ सरेंडर कर दिया!
“तक़दीर ए इलाही, रज़ा ए पैगंबरी और इरादा बादशाही के सामने हम अपने सर तस्लीम खम करते हैं__ दिफा ए मदीना तय्यबा -ज़िन्दाबाद”
इसी के साथ “अहले सून्नत” का वह दोर जो मुसलसल चला आ रहा था –
खत्म कराने की ना’पाक कोशिश हुई,
( याद रहे आज भी सऊदी अरब में अहले सन्नत के अरबी सुन्नी वहा मौजुद है,)
और इस के बाद “अल हिजाज” का नाम बदलकर
आले सऊद के नाम से सऊदी अरेबिया नाम बदला गया,
यही से वहाबियत नजदीयत की शुरुआत हुई,
और यही सऊदी वहाबी नजदी हुकुमत ने आगे जा कर 1925 मे जन्नतूल बकी मे
अहले बैत ओर सहाबा ए किराम के पक्के मजारत को शहीद किये गये,