इस्लाम और मुसलमानों के सम्बन्ध में जो ग़लतफहमियॉ पार्इ जाती हैं उनमें से कुछ गलतफहमियॉ औरतों के बारे में हैं।
इस्लाम से पहले आमतौर से हर समाज और हर सोसाइटी में औरत को हीन समझा था। उसका अपमान किया जाता और तरह-तरह के अत्याचारों का उसे निशाना बनाया जाता था।
• भारतीय समाज में पति के मर जाने पर पति की लाश के साथ पत्नी को भी जिन्दा जल जाना पड़ता था।
• चीन में औरत के पैर में लोहे के तंग जूते पहनाए जाते थें।
• अरब में लड़कियों को जीवित गाड़ दिया जाता था।
इतिहास गवाह हैं कि इन अत्याचारों के विरूद्ध आवाज उठाने वाले सुधारक निकटवर्ती युग में पैदा हुए हैं, लेकिन इन सभी सुधारकों से शताब्दियों पहले अरब देश में प्यारे नबी सल्ल0 औरतों के हितैषी के रूप में नजर आते हैं और औरतों पर ढाये जाने वाले अत्याचारों का खात्मा कर देते हैं।
औरत के अधिकारों से अनभिज्ञ, अरब समाज मे प्यारे नबी सल्ल0 ने औरत को मर्द के बराबर दर्जा दिया। औरत का जायदाद और सम्पत्ति मे कोर्इ हक न था, आप स0 ने विरासत मे उसका हक नियत किया। औरत के हक और अधिकार बताने के लिए कुरआन मे निर्देश उतारे गये।
मॉ-बाप और अन्य रिश्तेदारों की जायदाद में औरतों को भी वारिस घोषित किया गया। आज सभ्यता का राग अलापने वाले कर्इ देशों में औरत को न जायदाद का हक हैं न वोट देने का। इंग्लिस्तान में औरत को वोट का अधिकार 1928 र्इ0 पहली बार दिया गया। भारतीय समाज मे औरत को जायदाद का हक पिछले दिनों में हासिल हुआ।
लेकिन हम देखते हैं कि आज से चौदह सौं वर्ष पूर्व ही ये सारे हक और अधिकार नबी स0 ने औरतों को प्रदान किये। कितने बड़े उपकार कर्ता हैं आप!
आप स0 की शिक्षाओं में औरतों के हक पर काफी जोर दिया गया हैं। आप स0 ने ताकीद की लोग इस कर्तव्य से गाफिल न हो और न्यायसंगत रूप से औरत को मारा-पीटा न जाय।
औरत के साथ कैसा बर्ताव किया जाय, इस सम्बन्ध मे नबी स0 की बातों का अवलोकन कीजिए:
(1) अपनी पत्नी को मारने वाला अच्छे आचरण का नही हैं।
(2) तुममें से सर्वश्रेष्ट व्यक्ति वह हैं जो अपनी पत्नी से अच्छी सूलूक करे।
(3) औरतों के साथ अच्छे तरीके से पेश आपे का खुदा हुक्म देता हैं, क्योकि वे तुम्हारी मॉ, बहिन और बेटियॉ हैं।
(4) मां के कदमों के नीचे जन्नत हैं।
(5) कोर्इ मुसलमान अपनी पत्नी से नफरत न करें। अगर उसकी कोर्इ एक आदत बुरी हैं तो उसकी दूसरी अच्छी आदत को देख कर मर्द को खुश होना चाहिए।
(6) अपनी पत्नी के साथ दासी जैसा व्यवहार न करो। उसको मारो भी मत।
(7) जब तुम खाओं तो अपनी पत्नी को भी खिलाओं । जब तुम पहनो तो अपनी पत्नी को भी पहनाओं
(8) पत्नी को ताने मत दों। चेहरे पर न मारो। उसका दिल न दुखाओं। उसकी छोड़कर न चले जाओं।
(9) पत्नी अपने पति के स्थान पर समस्त अधिकारों की मालिक हैं।
(10) अपनी पत्नियों के साथ जो अच्छी तरह बर्ताव करेंगे, वही तुम में सबसे बेहतर हैं।
ठतने अधिकार प्रदान करके औरत को बिल्कुल आजाद भी नही छोड़ा, बल्कि उसे कुछ बातों का पाबन्द भी किया:
1-औरत इस तरह रहे कि जब उसका पति उसे देखे तो खुश हो जाय। जब कोर्इ हुक्म दे तो उसे पूरा करें। पति अगर दूर हो तो उसकी सम्पत्ति और अपने सतीत्व की सुरक्षा करें। ऐसी ही स्त्री आदर्श पत्नी समझी जायेगी।
2-सुशीला पत्नी का मिल जाना अमूल्य पूंजी के बराबर हैं।
3-जो पांचो समय की रोजाना नमाज पढ़े, रमजान के रोजे रखे और अपने पति का कहा माने तथा अपने सतीत्व की सुरक्षा करें, ऐसी औरत जिस रास्ते से चाहे जन्नत में प्रवेश करें।
4-दुनिया की सारी दौलत से ज्यादा कीमती चीज पाक दामन बीबी हैं।
इस तरह प्यारे नबी स0 ने औरतों को अधिकार भी दिये और उन्हे उनके कर्तव्यो से भी बाखबर किया।
किसी को आपत्ति हो सकती हैं कि औरतों को इतने सारे अधिकार प्रदान करने वाले इस्लाम में बहुपत्नीवाद की अनुमति क्यों हैं? क्या यह औरतों पर खुला जुल्म नहीं हैं। इस सिलसिले में हमे इतिहास, पुरूष के स्वभाव और जिन्दगी के व्यावहारिक मसलों को सामने रखना होगा।
हिन्दुस्तान के राजा दशरथ के कर्इ पतिनयां थी। इसी तरह कृष्णाजी को भी हम रूक्मिणी, सत्यबा और राधा के अलावा असंख्य गोपियों के बीच देखते हैं।
बल्ली औरतों के साथ मरगन जैसे देवता को हम ऐश करते हुए पाते हैं।
यह तो थी प्राचीन काल और पुराणों की बात, अब ऐतिहासिक घटनाओं को लीजिए।
बड़े-बड़े राजाओं के यहॉ एक से अधिक पत्नियॉ होती थी। तमिलनाडू के कटटा बम्मन के घर कर्इ पत्नियां थी।
आज भी कुछ राजनैतिक नेता कर्इ पत्नियां रखते हैं।
इस्लाम से पहले अरब मे पत्नियों की संख्या पर कोर्इ हदबन्दी नही थी। प्यारे नबी ने मर्द के स्वभाव और अमली जरूरतों का ध्यान रख कर इस असीम संख्या को चार तक सीमित रखा।
इस्लाम से पहले अरब दुनिया में शादी विवाह का कोर्इ विशेष नियम और सिद्धान्त न था। गिरोहो और कबीलों के बीच पत्नियॉ और दासियां रखने जब चाहा तलाक दे दी, इन हालात के सुधार के लिए खुदा के निर्देश आये, पत्नियों की संख्या को सीमित कर दिया गया और तलाक के सम्बन्ध में उचित नियमों और शिष्टाचार की पाबन्दी का हुक्म दियागया कुरआन में फरमाया गया।
‘‘ तुम्हे अगर आशंका हो कि यतीम बच्चो की परवरिश बगैर शादी किये न हो सकेगी तो अपनी पसन्द की दो, तीन या चार औरतों से तुम विवाह कर सकते हो (यह आशंका हो कि उनके साथ भी तुम न्याय न कर पाओगे तो) और औरत या दासी ही पर बस करो, अन्याय से बचने के लिए यह आसान तरीका हैं। (निसा 6)
क्ुरआन की इस हिदायत मे जो हिकमते और भलार्इयां हैं उन पर भी विचार कीजिए। न्याय, इंसाफ तथा सच्चार्इ के साथ पत्नी से पेश आओ। बहुस्त्रीवाद की अनुमति भी हैं और इसी के साथ-साथ नाइंसाफी से बचने की ताकीद भी। न्याय और इन्साफ सम्भव न हो तो एक ही शादी पर जोर दिया गया हैं।
मर्द को किसी भी समय अपनी काम तृष्णा की जरूरत पेश आ सकती हैं। इसलिए कि उसे कुदरत ने हर हाल मे हमेशा सहवास के योग्य बनाया हैं जबकि औरतों का मामला इससे भिन्न हैं।
माहवारी के दिनो मे, गर्भावस्था में (नौ-दस माह) प्रसव के बाद के कुछ माह औरत इस योग्य नही होती कि उसके साथ उसका पति सम्भोग कर सके।
सारे ही मर्दो से यह आशा रखना सही न होगा कि वे बहुत ही संयम और नियन्त्रण से काम लेंगे और जब तक उन की पत्नियां इस योग्य नही हो जाती कि वे उनके पास जायें, वे काम इच्छा को नियंत्रित रखेंगे। मर्द जायज तरीके से अपनी जरूरत पूरी कर सके, जरूरी है कि इसके लिए राहे खोली जायें और ऐसी तंगी न रखी जाय कि वह हराम रास्तों पर चलने पर विवश हों। पत्नी तो उसकी एक ही हो, आशना औरतों की कोर्इ कैद न रहे। इससे समाज मे जो गन्दगी फैलेगी और जिस तरह आचरण और चरित्र खराब होंगे इसका अनुमान लगाना आपके लिए कुछ मुश्किल नही हैं।
व्यभिचार और बदकारी को हराम ठहराकर बहुस्त्रीवाद की कानूनी इजाजत देने वाला बुद्धिसंगत दीन इस्लाम हैं।
एक से अधिक शादियों क मर्यादित रूप में अनुमति देकर वास्तव में इस्लाम ने मर्द और औरत की शारीरिक संरचना, उनकी मानसिक स्थितियों और व्यावहारिक आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा हैं और इस तरह हमारी दृष्टि में इस्लाम बिल्कुल एक वैज्ञानिक धर्म साबित होता हैं। यह एक हकीकत है, जिसपर मेरा दृढ़ और अटल विश्वास हैं।