*, सहाबा और अहले बैत*
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कुछ लोग सहाबा और अहले बैत मे फर्क नहीं समझते बल्कि सहाबा ए किराम को अहले बैत से अफजल समझते हैं
जबकि एसा नहीं है सहाबा ए किराम का एक अपना मुकाम है लेकिन अहले बैत सहाबा ए किराम से भी अफजल है और सहाबी खुद भी अहले बैत से मोहब्बत करते थे।
सहाबी रसुल को अपने कंधों पर उठा सकते है
लेकिन
*अहले बैत वो है जिन्हें रसुल ने अपने कंधों पे उठाया*
सहाबी रसुल का झुठा दुध पी सकते है
लेकिन
*अहले बैत वो है जिन्हें रसुल ने अपनी जुबान चुसाई*
सहाबी नमाज मे नबी के पिछे रहते हैं
लेकिन
*जो हालात ए नमाज मे पुश्ते नबी पर आ जाए वो अहले बैत है*
सहाबी पुल सिरात पार कर सकते हैं
लेकिन
*अहले बैत पुल सिरात पार करवा सकते हैं*
सहाबी जन्नती हो सकते हैं
लेकिन
*अहले बैत जन्नत के सरदार है*
सहाबी मोमीन हो सकते हैं
लेकिन
*अहले बैत अमीर उल मोमीनीन है*
सहाबी अल्लाह और रसुल से मोहब्बत करते हैं
लेकिन
*जिससे अल्लाह और उसका रसुल जिससे मोहब्बत करे वो अहले बैत है*
सहाबी मस्जिद में शहीद हुए है
लेकिन
*अहले बैत काबे मे पैदा हुए*
सहाबी हाफ़िज़ ए कुरान हो सकते हैं
लेकिन
*अहले बैत बोलता कुरान है*
(सहाबी होने से पहले) बहुत से सहाबी एसे है जिन्होने कुफ्र किया है
लेकिन
*अहले बैत वो है जिन्होने कभी कुफ्र नहीं किया*
सहाबी नबी और उनकी आल पे दरुद ओ सलाम भेजते हैं
लेकिन
*जिन पर अल्लाह दरुद भेजें वो अहले बैत है।*
सारे सहाबा ए किराम नबी ए करीम से है
लेकिन नबी ए करीम ने फरमाया
अली मुझसे है मे अली से हु
फातमा मुझसे है मे फातमा से हु
हसन मुझसे है मे हसन से हु
हुसैन मुझसे है मे हुसैन से हु
सिलसिला ए सहाबीयत सो दोसो साल मे खत्म हो गया
लेकिन
सिलसिला ए अहले बैत ता कयामत तक रहेगा
क्योंकि नबी ए करीम ने फरमाया 2 चीजें थामे रखना कभी गुमराह नहीं होगे
1:कुरान
2: अहले बैत
और अल्लाह भी अपने महबूब से यही कहलवा रहा है कि
*(ए रसुल कह दो मे तुमसे इस नबुवत का कोई सिला नहीं मांगता सिवा अहले बैत कि मोहब्बत के) कुरान, सुरह: 43 आयत न: 23*
आज के दौर मे जो अहले बैत कि शान के बराबर सहाबा ए किराम को ला कर खडा़ करदे तो समझ लेना कि वो सबसे बड़ा खारजी है।